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थे । ६३ वर्ष तक संयम साधना कर सन् १९५६ जयपुर में सन्यारा सहित स्वर्गवास हुआ । श्रमण संघ जिस समय बना उस समय आप श्रमण संघ में सबसे बड़े होने से आप महास्थविर की उपाधि से अलंकृत थे ।
अब आता है कार्तिकी पूनम का दिन। यह चातुर्मास का अन्तिम दिन है । लेकिन है बहुत ही महत्वपूर्ण ।
कार्तिकी पुनम दो महापुरुषों के जन्म से गौरवान्वित है । एक हैं-आचार्य हेमचन्द्र और दूसरे हैं-धर्मवीर लोंकाशाह।
आचार्य हेमचन्द्र का जन्म कार्तिकी पूनम, वि. सं. ११४५ को हुआ। आप अनुपम मेधा के धनी और निष्णात साहित्यकार थे। आपने साहित्य की प्रत्येक विधा पर सफलतापूर्वक कलम चलाई। धर्म, दर्शन, इतिहास, व्याकरण, नीति-आदि साहित्य का कोई भी अंग आपकी लेखनी से अछूता
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