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इस पर्व के प्रारम्भ होने में कई कथाएँ भी वर्णित की गई हैं । जैन परम्परा के अनुसार महामुनि विष्णुकुमार शक्ति का प्रदर्शन करके जैन श्रमण संघ की रक्षा करते हैं तो वैदिक परम्परा के अनुसार विष्णु वामन का रूप रखकर बलि से ३ पग भूमि की याचना करते हैं और फिर विराट रूप बनाकर समस्त भू-मण्डल को ही नाप लेते हैं । इन दोनों कथाओं में नाम साम्य तो है ही, साथ ही एक प्रेरणा है- विराट बनने की, हृदय को विशाल बनाने की । जैसे महामुनि विष्णुकुमार और विष्णु वामन से विराट बने, वैसे ही हम भी विशाल हृदय बनें । तन चाहे छोटा रहे लेकिन मन विशाल हो । हमारे हृदय में प्राणी मात्र की रक्षा के संस्कार सुदृढ़ हों । अपना सब कुछ समर्पण करके भी धर्म, राष्ट्र एवं समाज की रक्षा तथा अभिवृद्धि करने का संकल्प जगायें ।
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