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एक स्थान पर स्थिर होकर मानव-मन की कोमल भूमि उपदेशों द्वारा तैयार करते हैं और फिर उसमें धर्म के, शुभ संकल्पों एवं उत्तम संस्कारों के बीज बोते हैं। और जीवन- क्षेत्र को धार्मिकता के वातावरण से हरा- भरा बना देते हैं। कबीरदास के शब्दों में
कबिरा बादल प्रेम का, हम पर बरखा आई । अन्तर भीगी आतमा, हरी-भरी वनराई ॥
इन शुभ भावनाओं की वर्षा सन्त-सती और श्रमण-श्रमणी के सम्पर्क और सत्संगति से होती है ।
__साधु-संन्यासी और विशेष रूप से जैन श्रमण-श्रमणी चातुर्मास में विहार नहीं करते, एक स्थान पर रहकर ही धर्म की
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