________________
गंगा बहाते हैं । यह उनका कल्प है, आचार है, मर्यादा है ।
इस मर्यादा का कारण है-वर्षाऋतु में जीवों की अधिक उत्पत्ति हो जाना। आवागमन से उन सूक्ष्म जीवों की हिंसा न हो जाय, उन्हें किसी प्रकार का कष्ट न हो, इस दया और अहिंसा की भावना से श्रमणजन एक स्थान चार महीने वास करते हैं । इसे उनका वर्षावास या चातुर्मास कहा जाता है ।
वर्षावास की ऐसी ही परम्परा वैदिक और बौद्धधर्म में भी पाई जाती है। प्राचीनकाल में वैदिक संन्यासी, परिव्राजक
और बौद्धभिक्षु एक ही स्थान पर रहते थे, वर्षा ऋतु में गमनागमन नहीं करते थे ।
महाभारत में भी ऐसे प्रसंगों का उल्लेख है और तथागत बुद्ध ने तो अपने
(११)