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किसी फल प्राप्ति की इच्छा से की जाती है । शायद ही संसार का कोई प्राणी हो जो बिना किसी कामना के एक कदम भी चले और यहाँ तक कि एक अंगुली भी हिलाए । वीतराग के सिवाय निष्काम साधना कौन कर सकता है । कामना भले ही पवित्र हो या स्वार्थ दूषित-परन्तु कामना सभी संसारी प्राणियों में रहती ही है।
यद्यपि शास्त्रकारों ने, मन्त्र विशारदों ने और मनीषियों ने काम्य जाप अथवा काम्य साधना को निम्नस्तर का बताया है और निष्काम जप साधना को उच्चस्तरीय घोषित करके गुणगान किये हैं । फिर भी साधकों में अपनी-अपनी रुचि के अनुसार दोनों रूप प्रचलित रहे हैं । __ इसका कारण यह रहा कि अधिकांश मंत्र प्रमुखतया लौकिकता से सम्बद्ध रहे; इनका फल स्वर्ग-प्राप्ति तथा भौतिक सुख-समृद्धि,