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गुणात्मक विकास का संदर्शन कराता है । __ यदि इन परमेष्ठियों के पदक्रम की दृष्टि से विचार किया जाय तो काले रंग से नीला रंग विशुद्धि का प्रतीक है, नीले की अपेक्षा पीले रंग में विशुद्धि अधिक होती है और श्वेत वर्ण तो सर्वविशुद्ध है ही; ठीक उसी प्रकार जैसे कृष्णलेश्या से नीललेश्या विशुद्ध है और नील की अपेक्षा तेजोलेश्या विशुद्ध तथा शुक्ललेश्या तो विशुद्धतम है ही। .
प्रस्तुत ध्यान साधना के सन्दर्भ में इस वर्ण विशुद्धता का अभिप्राय आत्मा के परिणामों की विशुद्धता है। । यद्यपि यह सत्य है कि धर्म साधना अथवा धार्मिकता का प्रारम्भ ही तेजोलेश्या से होता है; कृष्ण, नील, कापोत ये तीनों अधर्मलेश्याएँ मानी गई हैं । किन्तु नवकार मंत्र साधना में जो साधुजी का काले रंग में और उपाध्यायजी का नीले रंग में ध्यान