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इस प्रकार नमोकार महामंत्र की साधना विभिन्न वर्णों (रंग) के माध्यम से एकनिष्ठा और दृढ़ विश्वास के साथ की जाती है ।
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यद्यपि आत्मिक दृष्टि से विचार किया जाय तो आत्मा का कोई वर्ण ही नहीं होता । सिद्ध परमेष्ठी, जो परमशुद्ध, आत्मस्वरूप हैं, वे तो पूर्णतः अवर्ण ही हैं । किन्तु नवकार महामंत्र की साधना में जो रंगों का विधान किया गया है, वह प्रतीकात्मक है ।
अर्हन्त परमेष्ठी का श्वेत वर्ण उनकी निर्मलता का प्रतीक है, आचार्य परमेष्ठी का पीला रंग उनकी ज्ञान गरिमा और आचार की उत्कृष्टता तथा अशबल (निष्कलंक) संयम का प्रतिनिधित्व करता है । उपाध्याय जी का नीला रंग उनकी प्रशांतता, उपशमता का दिग्दर्शन कराता है, जब कि साधुजी का काला वर्णं उनके गुणों के