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विषय-वासनाओं के लिए एड्रीनल आदि अंतःस्रावी ग्रन्थियों के स्रावों-हारमोनों को जिम्मेदार मानते हैं । एड्रीनल ग्रन्थि के स्राव से मनुष्य अहंकारी बनता है । इसी प्रकार क्रोध, झगड़ालूपन आदि के कारण भी हारमोन्स हैं ।
विचारणीय तथ्य यह है कि सामायिक की साधना किस प्रकार उपशम भाव को बढाती है, वृत्तियों को परिवर्तित करती है ?
सामायिक की साधना में बैठकर श्रावक पहले स्थिर आसन करे, श्वास को सम और लयबद्ध अवस्था में लाये, फिर अपने गुरु अथवा किसी शुभ ध्येय पर चित्त को स्थिर करे, प्राणधारा के प्रवाह को उस ध्येय की ओर मोड़ दे । आलम्बन अथवा ध्येय में चित्त की स्थिरता, एकाग्रता बनी रहे ।
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