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इस संपूर्ण प्रक्रिया का प्रभाव यह होता है कि मन की चंचलता मिटती है, चंचलता मिटने से ग्रन्थियों का स्राव नियंत्रित हो जाता है, विषय-कषायों के आवेग न्यून हो जाते हैं।
चिकित्सा वैज्ञानिक इस कार्य को विविध औषधियों आदि से निष्पन्न करते हैं, और साधक सामायिक की साधना से ।।
इस प्रकार सामायिक की साधना से अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्रावों-हारमोनों का नियंत्रण होता है, जिसका परिणाम साधक के जीवन में वृत्तियों के परिवर्तन के रूप में परिलक्षित होता है।
महामनीषियों ने कहा है कि साधक विषय-कषायों को उपेक्षित कर देता है इसलिये वृत्तियों में परिवर्तन होता है और उपशम भाव की उपलब्धि होती है ।
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