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सोख जाता है, अपने अन्दर जज्ब कर लेता है, धर्मसाधना से कुछ उपलब्धि हुई, साधक को ऐसी अनुभूति हो ही नहीं पाती ।
अतः वृत्तियों के परिवर्तन के लिए, नई और अलौकिक आत्मिक शक्ति की अनुभूति के लिए कम से कम ४८ मिनट का समय आवश्यक है । वैसे शास्त्रों में कहा गया हैनित्य ४८ मिनट तक सामायिक करने वाला साधक यदि छह महीने तक लगातार साधना करता रहें तब उसे आत्मिक सुख की अनुभूति होती है । वह अनुभूति शब्दातीत होती है । स्वर्गीय सुख भी उसके समक्ष नगण्य हैं ।
गहराई भी आवश्यक
समय के साथ-साथ गहराई भी आवश्यक है । यदि साधक सामायिक के पाठों को, स्तोत्र आदि को सिर्फ वाणी से
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