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चित्त में शांति की लहर व्याप्त हुई ।
और इन सब उपलब्धियों के लिए ४८ मिनट का समय तो आवश्यक है ही। इतने 'समय से कम में साधक को किसी भी अलौकिक अनुभूति की उपलब्धि नहीं हो पाती।
कल्पना कीजिए एक कोरा घड़ा है, कुम्हार के घर से बनकर अभी आया है । उसमें एक बूंद पानी डाला । मिट्टी सोख गई । पानी की बूँद गिरी जरूर पर दिखाई नहीं देती; घड़ा कोरा का कोरा ही रहा । अब इसमें लगातार पानी की बूँदें गिराते जाइये । काफी देर बाद, जब पानी को सोखने की शक्ति घड़े की मिट्टी में नहीं रहेगी तब पानी दिखाई देगा।
इसी तरह विषय-कषायों से लिप्त मन जो बाह्य विषयों के सुखों में अनुरक्त है, वह प्रारम्भिक क्षणों-कुछ काल की साधना को
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