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है, उसका आकर्षण इन वस्तुओं के प्रति रहता ही नहीं, अथवा इतना क्षीण हो जाता है कि वह द्वन्द्वातीत हो जाता है ।
यही समता-भाव का चरम है, जिसकी ओर भगवान महावीर ने संकेत किया है और यही समत्व सामायिक साधना का ध्येय है । साधक इसी ध्येय को प्राप्त करके समत्वभाव से परिपूर्ण होकर अपनी जीवन यात्रा को सफल करता है।
सामायिक के चार भेद दूसरी अपेक्षा से सामायिक के चार भेद बताये गये है
१. दर्शन सामायिक २. ज्ञान सामायिक ३. देशविरति सामायिक ४. सर्वविरति सामायिक
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