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१. दर्शनसामायिक-इसे सम्यक्त्व सामायिक भी कहा गया है । सम्यक्त्व का अभिप्राय है-सम्यग्दर्शन । दर्शन है दृष्टि की विशुद्धि, सच्ची श्रद्धा-आत्म तत्व के प्रति । अपनी आत्मा, उसके अनन्त गुणों
और शक्तियों के प्रति अचल निष्ठा, दृढ़ विश्वास । ___सम्यग्दर्शन-केवल तत्व श्रद्धा या आत्म-प्रतीतिरूप ही नहीं, यह तो एक आध्यात्मिक पक्ष है, इसका एक मनोवैज्ञानिक रूप भी है-भावों का सरलीकरण, शुद्धीकरण । सम्यक्त्व के स्पर्श से भावों में आमूल चूल परिवर्तन आता है । कठोरता कोमलता में, कटुता मधुरता में, क्रूरता-करुणा में और विषमता- समता में बदल जाती है। जब तक आत्मा के प्रति निष्ठा और
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