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(३) सम्म-इस सामायिक में सम्यक् ज्ञान-दर्शन-चारित्र का एकीकरणसम्मिलन होता है । सम्यग्ज्ञान एवं सम्यक् - श्रद्धा का एकीकरण अथवा सम्मिलन चारित्रगुण को उत्कर्षता प्रदान करता है, परिणामस्वरूप आत्म-भावों में साधक की स्थिरता बढ़ती है, तन्मयता आती है और उसे अनिर्वचनीय आनन्द की प्राप्ति होती है । इसी कारण सामायिक के इस सम्म-स्वरूप को तन्मय परिणाम रूप बताया गया है। . ___ आत्मभावों में रमणता-तन्मयता का व्यावहारिक फल संसार की समस्त वस्तुओं, विषयों, लाभों से विरक्ति अथवा उदासीनता के रूप में प्रगट होता है । तब वह स्थिति बनती है कि लाभ, अलाभ, हर्ष-शोक, संयोग-वियोग से व्यक्ति अप्रभावित रहता
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