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बाधा है, व्यवहार्यता की । व्यवहार में इसका प्रयोग अत्यन्त कठिन है । सामान्य मनुष्यं तो क्या बड़े-बड़े साधक भी इस सिद्धान्त पर पूरी तरह अमल नहीं कर पाते; फल की आशा उनमें भी रहती ही है और यदि उचित फल की प्राप्ति न हो तो वे भी निराश-उदास हो जाते हैं ।
मनुष्य चिन्तनशील प्राणी है । वह योजनाबद्ध कार्य करता है । कोई भी कार्य शुरू करने से पहले वह उसके फल पर विचार कर लेता है । पिता अपने पुत्र को स्कूल भेजने से पहले ही उसके विद्या प्राप्त करके, डिग्री लेने, डॉक्टर, वकील, इन्जीनियर बनने की आशा अवश्य करता है । व्यापारी व्यापार करने से पहले लाभ की भी नियोजना करता है, तभी वह पूँजी लगाता है, श्रम करता है, अपनी बुद्धि और