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ही ऐसी होती है कि किसी न किसी रूप में विषमता उनके जीवन में प्रवेश कर ही जाती है।
कौन चाहता है-दुःखमय परिस्थितियों को, आपत्ति-विपत्ति को, अनचाहे संबंधों को और उनके कारण उत्पन्न हुए क्लेशों-संघर्षों को ? .
लेकिन विवशता यह है कि मानव को इन सबसे दो-चार होना ही पड़ता है, विपरीत स्थितियाँ निर्मित हो जाती है और उन्हें सुलझाने के लिए उसे आगे आना ही पड़ता है । किन्तु कठोर यथार्थ यह है कि सुलझाने के प्रयास में वह और भी अधिक उलझ आता है, उसका जीवन अनेक उलझनों से भर उठता है । कई प्रकार के संघर्ष उसके जीवन को चारों तरफ से घेर लेते हैं।
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