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आवेग-क्रोध आदि की अग्नि बुझेगी नहीं, तब तक शान्ति कैसे प्राप्त होगी ? सामाबिक-मानसिक आवेग-उद्वेग को शान्त करने वाली साधना है।
संक्षेप में अशुभ से निवृत्ति और शुभ में प्रवृत्ति ही सामायिक है । इस प्रकार 'सामायिक' शब्द ही अपने सम्पूर्ण अर्थ का, अपनी सम्पूर्ण क्रिया का और उससे होने वाली फलश्रुति का बोध करा देता है कि 'सम' भावों की अनुभूति जिससे हो, समभावों की स्थिति जिसमें हो वह है सामायिक ।
समत्व ः जीवन जीने की कला
यह सर्वमान्य तथ्य है कि प्रत्येक प्राणी की आन्तरिक इच्छा समता में ही जीने की होती है, विषमता कोई नहीं चाहता । लेकिन संसार और सांसारिकजनों की स्थिति
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