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(५३) परम्परारूप में मानव सूर्योदय होते ही काम में लग जाता दिन भर परिश्रम करता जीविकोपार्जन करता और सूर्यास्त होने से पहले घर लौट आता और सूर्य डूबने से पहले आहार- पानी से निवृत्त हो जाता था ।
रात्रि के समय का उपयोग वह अपने- अपने इष्टदेवों के स्मरण में करता और फिर विश्राम के लिए - शरीर की थकान मिटाने के लिए सो जाता, भरपूर नींद लेकर तरोताजा होकर रात्रि के अन्तिम प्रहर में प्रभु भजन में लग जाता और फिर सूर्योदय होते ही अपने काम में लग जाता, कर्मशील
बन जाता ।
इसीलिए तो सूर्य को जग-प्रबोधक और प्राणिमात्र को कर्मशील बनाने वाला कहा गया है ।
दिवा- भोजन के सम्बन्ध में आधुनिक विज्ञान का निश्चित सिद्धान्त यह है कि सूर्य