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(४५) हुआ हो और दिन में ही खाया जाय, रात्रि को नहीं। ४. भाव शुद्धि-इसका सम्बन्ध भोजन बनाने से भी है और खाने से भी है । भोजन बनाते समय भी भाव शुभ हों, हृदय में प्रसन्नता और हर्ष हो तथा खाते समय भी हर्ष और प्रसन्नता का वातावरण हो।। __ मनोवैज्ञानिकों का कहना है भोजन बनाने वाला भी सात्विक वृत्ति का हो, स्नेह और वत्सलतापूर्वक भोजन बनाता हो तो वह भोजन मधुर और स्वास्थ्यकारी होता है । यदि बनाने वाला द्वेषपूर्वक, झुंझलाहट से या क्रोध में तमतमाया हुआ बनाता है तो भोजन भी नशीला हो जाता है । इसी प्रकार भोजन करते समय शांति, प्रेम और प्रसन्नता का भाव रहे तो वह भोजन पथ्यकारी होता है; क्रोध, शोक की भावना के साथ खाया हुआ अन्न, रक्त को दूषित करता है।