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७. पाप तत्व पापतत्व, पुण्यतत्व का बिरोधी है । यह आत्मा को पतित करता है। इसका लौकिकसांसारिक फल भी कड़वा है । इष्ट वियोग, अनिष्ट संयोग, शोक, दुःख, रोग आदि पाप के फलस्वरूप ही व्यक्ति को भोगने पड़ते हैं। धनहानि, दरिद्रता आदि भी इसी पाप का परिणाम है।
पाप का बंध १८ प्रकार से होता है अथवा १८ पापस्थानक हैं
(१) प्राणातिपात-जीवों का घात करने से। (२) मषावाद-असत्य भाषण से । (३) अवत्तारान-चोरी से । (४) मैथुन सेवन से।
(५) परिग्रह में आसक्ति और ममत्वभाव रखने से।
(६) क्रोध करने से, (७) मान (अभिमान) से,
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