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(८) छल-कपट, (8) लोभ-तृष्णा,
(२०) राग-सांसारिक पदार्थों पर रागआसक्ति,
(११) द्वष-पदार्थों के प्रति ईर्ष्या, घृणा, द्वष, (१२) कलह,
ख्यान-मिथ्यादोषारोपण, (१४) पैशुन्य- चुगली,
(१५) परपरिवाद-दूसरों की निन्दा, उनमें जो दोष नहीं हों, वैसे दोष लगाना, उनका प्रचार करना,
(१६) रति-भोगों की ओर आकर्षण, प्रीति अरति, संयम से उद्वेग ।
(१७) मायामृषावाद--कपट सहित झूठ बोलमा और,
(१८) मिथ्यादर्शन शल्य । इन अठारह प्रकार से पाप का बंध होता है ।
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