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________________ द्रव्य पूजा में हिंसा का प्राधान्य या अहिंसा का? ...39 2. दान देने से धर्म का अभ्युदय होता है। 3. सद्धर्म में पुरुषार्थ करने से अशुभ आरंभ की परम्परा नष्ट होती है। ___4. चैत्य दर्शनार्थ आये हुए सुविहित साधुओं के दर्शन एवं धर्म श्रवण का अमृत योग प्राप्त होता है। 5. परमात्मा के मुखकमल के दर्शन से आत्म स्वरूप का भान होता है। इसी के साथ चतुर्विध संघ का मिलन, परस्पर आराधना विषयक पृच्छा, नृत्य गान संगीत आदि के द्वारा परमात्मा के गुणों का उत्कीर्तन, तीर्थंकर नाम कर्म की प्राप्ति आदि अनेक लाभ होते हैं। इसीलिए द्रव्य के अधिकारी साधकों को आशय शुद्धि एवं जयणापूर्वक जिनपूजा आदि कृत्य करने ही चाहिए। शंका- निर्माल्य पुष्पों का विसर्जन कहाँ करना चाहिए? समाधान- ठंडक और सुगंध के कारण कई बार कुंथुआ आदि सूक्ष्म जीव फूलों में आश्रय ले लेते हैं। ऐसे पुष्प यदि न्हवण जल या नदी आदि में डाल दिए जाएं तो जीव विराधना की संभावना रहती है। अत: पुष्पों को छाया में ऐसे स्थान पर सुखाना चाहिए जहाँ किसी के पैर आदि नहीं आते हो। शंका- परमात्मा के नव अंग की पूजा करनी चाहिए या एक अंग की? समाधान- उत्सर्गत: परमात्मा के नव अंग की पूजा करनी चाहिए। परंतु कारण विशेष में समयाभाव हो अथवा पूजा की लम्बी कतार होने पर एक अंग की पूजा भी मान्य है। वर्तमान में शत्रुजय, शंखेश्वर आदि तीर्थों में परमात्मा के चरण की ही पूजा करवाई जाती है। इन परिस्थितियों में व्यवस्था अनुसार संतोष करना ही उत्तम है। स्तवपरिज्ञा एवं प्रतिमाशतक में स्पष्ट उल्लेख है कि "सर्वपूजाऽभावे देवता पूजा ज्ञातेन देवतादेश-पादादिपूजोदा हरणेन देशगत-क्रियामपि देशिपरिणामवद्।" भावार्थ- पूर्ण पूजा के अभाव में अथवा जब पूजा न हो सके तब देव के एक भाग रूप पैर आदि की पूजा से आंशिक क्रिया में पूर्ण देव पूजा मान लेना चाहिए। अत: यह कहा जा सकता है कि संयोगवश नवांगी पूजा के स्थान पर एक अंग की पूजा भी मान्य है, परंतु इसमें नव अंग पूजा का विरोध या एक अंग की पूजा का समर्थन नहीं है। शंका- एक बार मंदिर में चढ़ाए गए बादाम, श्रीफल आदि को दुबारा मंदिर में चढ़ा सकते हैं?
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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