SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 86
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय-4 द्रव्य पूजा में हिंसा का प्राधान्य या अहिंसा का? शंका- जब भाव जगत द्रव्य के आश्रित नहीं है, तो फिर भाव में प्रवेश करने हेतु द्रव्य की क्या आवश्यकता? समाधान- परमात्मा के समक्ष जो भी क्रियाएँ होती है उन सब विधानों का एक ही हेतु है- आत्मा में उपशम भाव की प्राप्ति। परमात्मा के दर्शन से आत्म स्वरूप का स्मरण हो सकें राग से वैराग्य की ओर हमारा प्रयाण हो सकें तथा परमात्मा के स्वरूप एवं आत्म स्वरूप में भेद कर सकें इसीलिए परमात्मा के अंग स्पर्श और पूजन का विधान है। इन धर्म क्रियाओं द्वारा हमें परमात्म स्वरूप का स्मरण एवं भान होता है। जिस प्रकार नक्शे को देखकर सम्पूर्ण भूगोल का स्मरण हो जाता है उसी प्रकार वीतराग की मूर्ति को देखकर ही वीतरागता का आभास एवं प्रकटीकरण हो जाता है। मूर्ति के समक्ष बैठकर एवं प्रभु गुणों को याद करके उन गुणों का ध्यान किया जाए तो साक्षात अरिहंत परमात्मा का आभास होने लगता है। इस तरह शुद्ध द्रव्य शुद्ध भाव में हेतुभूत बनता है। द्रव्य में तल्लीन होकर ही भावमय बना जा सकता है अत: भावों को उत्पन्न करने के लिए द्रव्य आवश्यक है और भाव आने के बाद द्रव्य स्वतः छूट जाता है। जैसे जब तक गिनती याद ना हो तब तक पुस्तक की आवश्यकता होती है, परन्तु याद होने के बाद उसके सहारे की आवश्यकता नहीं रहती। वैसे ही वीतराग भाव की प्राप्ति हेतु वीतराग मूर्ति के पूजन, आलंबन आदि की आवश्यकता होती है। वीतराग भाव की प्राप्ति के बाद नहीं। शंका- स्वद्रव्य के अभाव में श्रावकों को क्या करना चाहिए? समाधान- स्वयं के द्रव्य से पूजा करने पर भावों की वृद्धि होती है। शास्त्रों में वर्णन आता है कि सुविधाओं के अभाव में यदि कोई श्रावक संघ की सामग्री से द्रव्य पूजा करता है तो भी उसे सदा स्वद्रव्य से पूजा करने के भाव
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy