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________________ 30... शंका नवि चित्त धरिये ! समाधान- जीव की प्रत्येक प्रवृत्ति में हिंसा निश्चित है। सांसारिक कार्यों के लिए मोह भावों से युक्त होकर की गई प्रवृत्तियाँ कर्म बन्धन का कारण बनती है। वहीं धार्मिक कार्यों में की गई प्रवृत्ति शभ भावों से योजित होने के कारण कर्म निर्जरा का कारण बनती है, क्योंकि जैन धर्म में क्रिया की अपेक्षा भावों को प्रमुखता दी गई है। जीवन निर्वाह के लिए की गई हिंसा जहाँ पाप कहलाती है वहीं पूजा-भक्ति आदि के लिए कृत हिंसा में अन्य अनेक सावध कार्यों का त्याग हो जाने एवं अशुभ से शुभ की ओर प्रवृत्ति होने से वही कार्य धर्म कहलाता है। क्योंकि भविष्य में यह क्रिया विराट पुण्योदय में हेतुभूत बनती हैं। जिस प्रकार गृह कार्यों हेतु किया गया खर्च, खर्च कहलाता है लेकिन वही खर्च यदि दुकान चलाने के लिए किया जाए तो Investment कहलाता है। क्योंकि जितना पैसा Invest किया जाता है उससे कई गुणा अधिक द्रव्य वापस मिलता है। शंका- यदि दो-चार पुष्प चढ़ाने से पुष्प पूजा हो सकती है तो फिर सैकड़ों पुष्प एवं उनकी माला चढ़ाना अविवेक नहीं है? समाधान- यह सब भाव जगत पर आधारित तथ्य है। साधर्मिक भक्ति करनी हो तो दाल-रोटी से भी हो सकती है तो फिर उसके लिए विविध पकवानों का निर्माण क्यों? जयणा तो साधर्मिक भक्ति में भी आवश्यक है न? यथार्थ तथ्य यह है कि जहाँ पर शुभ भावों की उत्पत्ति का लाभ हो वहाँ पर हिंसा दोष रूप नहीं होती। दो-चार फूलों से भक्ति-भाव उत्पन्न होते हैं तो अधिक फूलों से अधिक भाव ही उत्पन्न होंगे। परन्तु हर कार्य विवेक पूर्वक एवं शास्त्रोक्त रीति से होना आवश्यक है। सर्वप्रथम परमात्मभक्ति तो स्वद्रव्य से होनी चाहिए। जिन मंदिर में यदि पुष्प आदि की सुविधा उपलब्ध भी हो, तो भी पूजा करने वालों को अन्य पूजार्थियों को ध्यान में रखकर एवं मूल्य देकर वस्तु का उपयोग करना चाहिए। साध-साध्वियों को वंदन करने में गमनागमन आदि की हिंसा का दोष तो लगता ही है और वंदन क्रिया में भी क्रिया करने सम्बन्धी हिंसा होती है फिर भी वह हिंसा नगण्य मानी जाती है एवं उपस्थित किसी एक मुनि को नहीं समस्त मुनिवृन्द को वंदन करने का प्रयास किया जाता है। वस्तुत: सामग्री की संख्या में नहीं अपितु उसके प्रयोग आदि में विवेक रखा जाना चाहिए। सामग्री का
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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