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________________ करिए जिनदर्शन से निज दर्शन ...29 ऐसे हैं जिन्हें इन क्रिया-कलापों की नित्यता बंधन रूप लगती है। गृहस्थ वर्ग ने अपनी बढ़ती हुई व्यस्तता के कारण मंदिरों के समस्त कार्य पूजारियों के हस्तगत कर दिए हैं। परन्तु वेतनभोगी पूजारियों के भरोसे मंदिरों में आशातनाएँ बढ़ रही है और इसी कारण मंदिरों के प्रभाव में न्यूनता आ रही है। __ कर्मचारियों की वृद्धि के कारण देवद्रव्य आदि की वृद्धि हेतु बोलियों का प्रचलन बढ़ गया है, जिसके कारण युवावर्ग एवं आम जनता के मन में जिनधर्म के प्रति उपेक्षा भाव बढ़ रहे हैं। अपनी सुविधा के अनुसार पूजा-प्रक्षाल आदि का समय बदलते-बदलते आजकल कई स्थानों पर सूर्योदय से पूर्व ही प्रक्षाल होने लगा है, जबकि सूर्योदय से पहले मंदिर खोलना भी शास्त्र सम्मत नहीं है। इसी के साथ न्हवण जल के विसर्जन आदि के सम्बन्ध में भी असावधानियाँ बढ़ती जा रही है। जिस कारण आराधना के स्थान पर विराधना ही अधिक हो रही है। आंगी के बढ़ते प्रचलन के साथ-साथ मंदिरों में चोरियाँ भी बढ़ रही है। जिनेश्वर परमात्मा के मूल वीतरागी स्वरूप के दर्शन दुर्लभ हो गए हैं और इस कारण दर्शनार्थियों के मन में भी संसार के प्रति वैराग्य भाव उत्पन्न नहीं होते। नित्य विलेपन में प्रयुक्त होते सिंथेटिक केशर, चंदन आदि के कारण आज मूर्तियों पर इसके दुष्प्रभाव परिलक्षित हो रहे हैं। मूर्तियाँ काली और दागयुक्त हो रही हैं। इसी के साथ प्रयुक्त हो रहे द्रव्य की गुणवत्ता और संख्या दोनों में भी गिरावट आ गई है। तत्त्वत: आज की सम्पूर्णतया भौतिक जीवन शैली में मंदिर दर्शन और जिनपूजन की नित्यता ने ही लोगों को धर्म मार्ग से जोड़कर रखा है। अतिव्यस्तता में दस मिनट के लिए किया गया परमात्म दर्शन पूरा दिन हमारी Battery को Positive Energy से Charged रखता है और Tension, Temperment आदि से Free रखता है। __ इस प्रकार आज के युग में नित्यदर्शन आवश्यक है पर जहाँ पर विधानों में अति हो रही है जिनाज्ञा के विपरीत कार्य हो रहे हैं वहाँ पर श्रावक वर्ग का सावधान होना अत्यावश्यक है। शंका- जीवन निर्वाह के लिए हिंसा करना गृहस्थ का आवश्यक क्रम है परंतु कर्म निर्जरा हेतु हिंसा करना कहाँ तक उचित है?
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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