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________________ अध्याय-3 करिए जिनदर्शन से निज दर्शन शंका- व्यावहारिक स्तर पर मूर्ति पूजा की महत्ता को स्पष्ट कीजिए। समाधान- जहाँ पक्ष होता है वहाँ विपक्ष भी होता है। मूर्ति पूजा का विरोध कई जगह देखा जाता है। हजारों वर्षों से चल रहे इस विरोध का निराकरण आज भी नहीं हो पाया है कि मूर्ति पूजा करनी चाहिए या नहीं? यदि हम व्यवहार जगत पर दृष्टि दौड़ाए तो दिनभर में हम अनेक सजीव-निर्जीव मूर्तियों के दर्शन करते हैं, उनका सम्मान एवं पूजन करते हैं। यदि मूर्ति पूजा के सार तत्त्व को समझे तो सिर्फ मूर्ति की पूजा करना ही मूर्ति पूजा नहीं है। इसका हार्द है किसी को अपना आदर्श या पूज्य मानकर उनका विनय, सम्मान आदि करना। हम दिनभर में अपने बाप-दादा, बड़ी-बड़ी सामाजिक हस्तियाँ आदि अनेक लोगों का सम्मान करते हैं। उनके आदेश का पालन करते हैं। अपने Role Models का अनुकरण करते हैं। प्रसिद्ध लोगों की समाधि स्थलों आदि पर जाकर फूल चढ़ाते हैं। यह सब किसी न किसी रूप में मूर्ति पूजा है। अत: सजीव या निर्जीव किसी न किसी रूप में मूर्ति का महत्त्व देखते हैं। मुख्य रूप से जो विरोध देखा जाता है वह मूर्ति पूजा को लेकर है, उसकी आवश्यकता एवं प्रासंगिकता सर्वमान्य है। शंका- मूर्ति पूजा का विरोध पूर्व काल में क्यों नहीं हुआ? समाधान- प्रागैतिहासिक काल से ही जिनपूजा, जिनमंदिर एवं जिनमूर्ति के साक्ष्य उपलब्ध होते हैं। जैनागम, प्राचीन गुफाएँ एवं पुरातत्त्व की खोजों में इसके साक्षात प्रमाण उपलब्ध होते हैं। यह संभव हो सकता है कि पूर्वकाल में पूजा-विधियों में इतने अधिक विधि-विधान एवं आडम्बर नहीं थे। गुफाओं को तोड़-फोड़कर जिनमंदिर एवं पत्थरों में ही जिन मूर्ति बना ली जानती थी। यही गुफाएँ श्रमणों एवं साधकों के लिए साधना स्थली के रूप में भी उपयोगी बन जाती थी। नित्य पूजा आदि का नियम न होने से गृहस्थ आता तो द्रव्य पूजा कर
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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