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________________ करिए जिनदर्शन से निज दर्शन ...21 लेता था पर क्रियाएँ भार रूप में थोपी हुई नहीं थी। वर्तमान युग की भाँति गृहस्थ वर्ग व्यस्त भी नहीं था। जब भी किसी व्यक्ति की इच्छा होती वह उद्यान आदि में मंदिर बनवाकर उसमें सुंदर लक्षणयुक्त जिन प्रतिमा की स्थापना कर देता था और परमेष्ठि नमस्कारपूर्वक प्रतिष्ठा हो जाती थी। नित्यस्नान, मंदिर सुरक्षा, पुजारी आदि की आवश्यकता नहीं थी अत: किसी प्रकार के व्यवस्था की कोई चिंता नहीं थी। भरत चक्रवर्ती की इच्छा हुई तो उन्होंने ऋषभदेव भगवान की संस्कार भूमि पर निषधा नामक चैत्य बनवाकर उसमें चौबीस तीर्थंकरों की प्रतिमाएं स्थापित की। परन्तु उस मंदिर के लिए कोई विशेष व्यवस्था की ऐसा उल्लेख कहीं भी प्राप्त नहीं होता। ____ सगर चक्रवर्ती के पुत्रों ने भी अपने पूर्वजों की कृति को चिरस्थायी बनाने हेत् मार्ग को दुर्गम बनाया पर वहाँ अन्य कोई व्यवस्था नहीं की। __ जैनागमों के अनुसार नंदीश्वर, रूचक, कुण्डल आदि द्वीपों में भी शाश्वत जिन मंदिर एवं प्रतिमाएँ हैं। वहाँ भी विशेष पर्व प्रसंगों, अष्टाह्निका, कल्याणक आदि अवसरों पर देवी-देवताओं द्वारा भक्ति की जाती है। इसी प्रकार भवनपति देवों के देवविमान में स्थित जिन चैत्यों में भी नित्यपूजा करने का कोई वर्णन प्राप्त नहीं होता है। इन सब तथ्यों से यह स्पष्ट होता है कि पूर्व काल में स्वाभाविक रूप से जो सहज संभव हो जाए वह किया जाता था। इसका मुख्य कारण यह था कि उस समय लोगों के परिणाम बहुत सरल थे एवं उनका बाह्य प्रवृत्तियों एवं हिंसक वृत्तियों में जुड़ाव कम था। वर्तमान की पूजा-विधानों में कई कालगत परिवर्तन आ चुके हैं। श्रावकों के मन में श्रद्धा एवं भक्ति-भाव का वेग कम होता जा रहा है तथा विधि-विधानों की अधिकता बढ़ती जा रही है। इस कारण कई लोगों को यह क्रियाएँ भार रूप लगती है। पुराने लोग सरल एवं सहज होने से उनकी श्रद्धा में तर्क एवं विरोध नहीं होता था। __यदि वर्तमान संदर्भो में मूर्ति पूजा के विरोध विषयक कारणों पर चिंतन करें तो जिन पूजा में आए परिवर्तन ही मात्र मूर्ति पूजा के विरोध का कारण नहीं है। लोगों की बदलती मानसिकता, आधुनिक जीवनशैली, आध्यात्मिक क्षेत्र में घटता रूझान, बढ़ती व्यावसायिक व्यस्तता, तर्कवादिता एवं स्वाभाविक वक्रता
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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