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18... शंका नवि चित्त धरिये!
टीका- तीर्थकृतां भगवतां प्रवचनस्य द्वादशांगस्य गणिपिटकस्य तथा प्रावचनिनां आचार्यादीनां युगप्रधानानां तथातिशयिना-मृद्धितमां केवलिमनः पर्यायावधिमच्यतुर्दश पूर्वविदां तथा मर्षोषध्यादि प्राप्त ऋद्धीनांयदभिगमनं गत्वा च दर्शनं तथा गुणोत्कीर्तनं संपूजनं गन्धादिना स्तोत्रेः स्त्वनमित्यादिका दर्शनभावना, अनया हि दर्शनभावनानवरतं भाव्यमानया दर्शन विशुद्धिर्भवतीति ।। ____भावार्थ- तीर्थंकर भगवंत, आचार्य भगवंत, युगप्रधान, केवली, मन:पर्यव ज्ञानी, अवधिज्ञानी, चतुर्दश पूर्वधर और आम!षधि ऋद्धि वाले आचार्य भगवंतो के सामने जाकर उनके दर्शन करना, गुण कीर्तन करना, सुगंधी द्रव्यों से पूजन करना, स्तोत्र आदि से स्तुति करना, यह सब दर्शन भावना की क्रिया है। इस भावना का निरंतर सेवन करने से दर्शन विशुद्धि होती है।
यहाँ पर गुरु भगवंतों की चंदन आदि सुगंधी द्रव्यों से पूजन करने का विधान स्पष्ट हो जाता है।
शास्त्रों में अनेक स्थानों पर नवांगी पूजा का विधान भी प्राप्त होता है। त्रिःप्रदक्षिणीकृत्य, यतिगुरुं नमस्कुर्यात्। आचार दिनकर नवभिःस्वर्णरुप्यमुद्राभिः गुरोर्नवांगापूजां कुर्यात्।'
अर्थात गुरु महाराज की तीन प्रदक्षिणा देने के बाद नौ स्वर्ण मुद्राओं से उनकी नवांगी पूजा करें। इसी प्रकार का वर्णन द्रव्य सप्ततिका, तत्त्वनिर्णयप्रसाद, धर्मसंग्रह, प्रतिष्ठा कल्प आदि कई ग्रन्थों में उपलब्ध है। इससे सिद्ध होता है कि दादा गुरु की नवांगी पूजा करनी चाहिए।
शंका- जिस द्रव्य पर परमात्मा की दृष्टि पड़ जाए या जो द्रव्य परमात्मा के मंदिर में चला जाए उसे अपने प्रयोग में लेना या नहीं?
समाधान- भगवान की दृष्टि पड़ने से द्रव्य वापरने योग्य नहीं रहता यह एक भ्रान्त मान्यता है। भगवान की दृष्टि तो अमृतमय होती है। उस दृष्टि के संयोग से वस्तु एवं व्यक्ति में रहे दोषों का उन्मूलन होता है, दोषों की उत्पत्ति नहीं। यदि ऐसा होता, तो रथयात्रा आदि के अवसर पर रथ में विराजित परमात्मा की दृष्टि सर्वत्र पड़ती है, तो क्या सम्पूर्ण वस्तु अग्राह्य हो जाएगी? परमात्मा की दृष्टि जिस पर भी पड़ जाए उसका मंगल ही होता है। कुमारपाल भाई शाह के अनुसार परमात्मा की दृष्टि तो जनपथ पर पड़नी चाहिए जिससे प्रत्येक व्यक्ति