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जिन प्रतिमा पूजनीय क्यों? ...17 स्थान पर मात्र चरण युगल की पूजा कर लेनी चाहिए।
शंका- शाश्वती प्रतिमाओं की पूजा हर रोज होती है या कभी-कभी?
समाधान- नंदीश्वर द्वीप एवं देवलोक आदि में शाश्वत जिन प्रतिमाओं का उल्लेख आता हैं। वहाँ पर दिन-रात का व्यवहार नहीं होता, अत: नित्यपूजा का प्रश्न ही नहीं होता। वहाँ देवताओं की जब इच्छा हो तब अथवा विशेष प्रसंगों पर जिनपूजा के उल्लेख शास्त्रों में मिलते हैं। वहाँ पर प्रक्षाल पूजा आदि अष्टप्रकारी पूजा के रूप में नहीं अपितु अंगपूजा, अग्रपूजा एवं भावपूजा के रूप में होती है।
शंका- जिनमंदिर में मंगलमूर्ति की स्थापना क्यों की जाती है?
समाधान- समवसरण में जिस प्रकार पूर्व दिशा में परमात्मा स्वयं विराजमान होते हैं तथा शेष तीन दिशाओं में परमात्मा के प्रतिबिम्ब के रूप में मूर्तियाँ स्थापित की जाती है वैसे ही जिनमंदिर में परमात्मा के प्रतिबिम्ब के रूप में मंगलमूर्ति की स्थापना करते हैं। जन मान्यतानुसार यदि परमात्मा की पीठ नगर की तरफ हो तो अमंगलकारी होती है इस हेतु से भी मंगलमूर्ति की स्थापना की जाती है।
शंका- दादा गुरुदेव की पूजा कौन-सी अंगुली से एवं कितने अंगों की करनी चाहिए?
समाधान- गुरुमूर्ति की पूजा अनामिका अंगुली से करनी चाहिए। कई लोग कहते हैं कि दादा गुरुदेव की पूजा अंगूठे से करनी चाहिए। यह अविधि है अत: इससे घोर आशातना होती है। अंगठे से साधर्मिक श्रावक-श्राविकाओं के तिलक किया जाता है। गुरुदेव हमारे साधर्मिक नहीं अपितु विशेष उपकारी है। आगमों में आचार्य को तीर्थंकर के समान माना है "तित्थयर समो सूरि" अत: उनकी पूजा तीर्थंकरों के समान अनामिका अंगुली से ही करनी चाहिए। शास्त्रों में भी पूज्यजनों की पूजा अनामिका से करने का निर्देश है। ___आचार्य को तीर्थंकर के तुल्य मानते हुए चंदन आदि सुगंधी द्रव्यों से पूजा करने का विधान आचारांग आदि आगमों में भी उपलब्ध है।
तित्थगराण भगवओ, पवयण पावयणि अइसअड्डीणं । अभिगमण णमण दरिसण, कित्तण संपूअणा थुणणा ।।
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