SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 59
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिन प्रतिमा पूजनीय क्यों? ...9 Champion बन जाती है, शपथ ग्रहण करते ही सामान्य व्यक्ति President of India बन जाता है, वैसे ही अंजनशलाका-प्रतिष्ठा आदि विधानों के द्वारा पत्थर की मूर्ति में भाव परमात्मा का आरोपण किया जाता है जिससे वह परमात्मा के समान ही पूजनीय एवं वंदनीय बन जाती है। शंका- अन्य धर्मावलम्बियों द्वारा स्थापित जिन प्रतिमा वंदनीय है या नहीं? समाधान- अन्य धर्मावलम्बियों के द्वारा जिन प्रतिमा यदि जिनेश्वर देव के स्वरूप में स्थापित एवं पूजित हो तो वह प्रतिमा पूजनीय एवं वंदनीय है। परन्तु जहाँ उसकी पूजा जैन विधि के अनुसार न होती हो या जहाँ उसे किसी अन्य इष्टदेव के रूप में पूजा जाता हो वहाँ पर जिन प्रतिमा के रूप में उसकी पूजा करने का शास्त्रों में सर्वथा निषेध है क्योंकि उस प्रतिमा में वैसे ही भाव परमाणुओं का आरोपण हो जाता है। ___आगमों में कहा गया है कि मिथ्यात्वी द्वारा गृहीत सम्यक श्रुत भी मिथ्या हो जाता है, वैसे ही मिथ्यात्वी द्वारा गृहीत जिन प्रतिमा भी अपूजनीय हो जाती है क्योंकि वह प्रतिमा मिथ्यात्व का ही वर्द्धन करती है। अत: अन्य धर्मावलम्बियों द्वारा स्थापित जिनप्रतिमा प्रसंग के अनुसार वंदनीय या अवंदनीय मानी जाती है। शंका- परमात्मा के नाम को. तो स्वीकार करें परन्तु उनकी आकृति या साकार प्रतिमा स्वरूप को न माने तो क्या दोष? समाधान- रोटी का नाम मात्र रटने से भूख शान्त भूख शान्त नहीं होती। करने के लिए रोटी के स्वरूप को जानना और उसे ग्रहण करना जरुरी है। यदि कोई शेर या साँप का नाम मात्र जाने और उन्हें पहचाने नहीं तो क्या वह उनसे अपनी रक्षा कर सकता है? इसी प्रकार यदि कोई मात्र परमात्मा का नाम स्मरण करें उनके गुणों या आकृति को नहीं जाने तो उसके मन में परमात्मा के प्रति श्रद्धा कैसे उत्पन्न हो सकती है? जिसका नाम है उसकी कोई न कोई आकृति भी अवश्य होनी चाहिए। शास्त्रों में अरूपी आकाश का भी एक आकार माना गया है। कुछ लोग तर्क देते हैं नाम गुणों का होता है आकार का नहीं अत: आकार को नहीं माने तो चल सकता है। भगवान ऋषभदेव एवं भगवान महावीर दोनों
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy