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________________ 8... शंका नवि चित्त धरिये! परमात्मा के गुण स्मरण एवं स्तवन आदि के लिए। जब भी किसी द्रव्य से किसी वस्तु का निर्माण किया जाता है तो वह निर्मित द्रव्य ही प्रमुख या वर्णनीय होता है उसकी सामग्री नहीं। हम Computer, Bike, घड़ा, इंसान आदि को उनके रूप से जानते हैं न कि वे जिस द्रव्य से निर्मित हैं उससे। दूसरा तथ्य यह है कि हम जब प्रतिमा को वंदन करते हैं तब प्रतिमा में आरोपित वीतराग गुणों को वंदन करते हैं न कि उस पत्थर को। निरंजन, निराकार, निमोह, निद्वेष, सर्वज्ञ, मनमोहन आदि वीतराग परमात्मा के संबोधन हैं, पत्थर के नहीं। जब पूजक व्यक्ति मूर्ति में पूजा योग्य गुणों का आरोपण करता है तब उसे प्रतिमा में साक्षात परमात्मा ही प्रतिभासित होते हैं। हम जिन भावों से प्रतिमा को देखते हैं हमें वह वैसी ही नजर आती है और वैसे ही भावों का निर्माण हमारे भीतर भी करती है। वैज्ञानिक शोध के अनुसार जब भी हम श्रद्धा भाव से किसी का स्मरण या दर्शन करते है तब हमारे भीतर स्फूर्त श्रद्धा गुण के कारण स्वयमेव ही कई गुणों का जागरण होता है। अन्तःस्रावी ग्रन्थियों का स्राव संतुलित एवं सक्रिय बनता है। इससे व्यक्ति का आध्यात्मिक ऊर्ध्वारोहण होता है। वस्तुत: पत्थर की मूर्ति कोई फल नहीं देती परंतु उस प्रतिमा के आलंबन से हमारे भीतर में जागृत शुभ भाव ही हमारे आत्मोत्थान में सहायक बनते हैं। शंका- पत्थर की मूर्ति को भगवान कैसे मानें, क्योंकि रूखी-सुखी रोटी को मिठाई मानने से क्या वह मिठाई बन जाएगी? समाधान- प्रसिद्ध उक्ति है 'भूख मीठी या लापसी', इससे स्पष्ट है कि स्वाद रोटी या मिठाई की अपेक्षा खाने वाले के मन और जीभ से अधिक जुड़ा हुआ है। भूखे व्यक्ति को रोटी प्राप्त होने पर वही आनंद अनुभूत होता है जो उसे मिठाई में होता है। वहीं दूसरी ओर तृप्त या असंतोषी व्यक्ति को मिठाई में भी रुचि नहीं होती। अत: भूख लापसी से ज्यादा मीठी होती है, वैसे ही शुभ परिणामी आत्मार्थी जीवों को जिन प्रतिमा में ही साक्षात परमात्मा के दर्शन हो जाते हैं, जबकि भोगार्थी जीव में साक्षात परमात्मा के दर्शन करने पर भी शुभ भाव जागृत नहीं होते। जिस प्रकार संयम ग्रहण करते ही एक गृहस्थ साधु के रूप में वंदनीय बन जाता है, एक Match या Trophy जीतने के बाद एक Team World
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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