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________________ 10... शंका नवि चित्त धरिये ! गुणों की दृष्टि से समान हैं पर जिसका नाम लेते हैं उसी का स्मरण होता है। इसी के साथ आकार में विशेष बोध शक्ति भी रही हुई है। नाम और आकार दोनों एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। मदर टेरेसा का नाम लेने पर हमारे सामने मदर टेरेसा की ही छाप आती है इंदिरा गांधी या माधुरी दीक्षित की नहीं। अत: परमात्मा के नाम के साथ आकृति को स्वीकार करना भी परमावश्यक है। शंका- आत्मा की उन्नति में पंचेन्द्रिय साधु का आलंबन अधिक लाभकारी है या एकेन्द्रिय पाषाण मूर्ति का? । समाधान- सर्वप्रथम तो मूर्ति अचेतन होने से एकेन्द्रिय नहीं है। साधु को किया गया वंदन या नमस्कार वस्तुतः साधु के शरीर को नहीं, अपितु उसके 27 गणों को किया जाता है क्योंकि शरीर तो दीक्षा से पहले भी था और मृत्यु के बाद भी रहेगा पर उसे वंदन कोई नहीं करता। क्योंकि शरीर स्वयं तो अचेतन है उसमें चेतनत्व आत्मा के कारण है अत: उस शरीर का आलंबन लेने से क्या फायदा? इसी प्रकार पूजा-भक्ति करते समय पाषाण प्रतिमा का आलंबन नहीं लिया जाता अपितु जिसकी मूर्ति है उन परमात्मा के गुणों का आलंबन लिया जाता है। अत: गुणाधिकता की अपेक्षा मूर्ति का आलंबन साधु शरीर से अधिक कल्याणकारी है। शंका- प्रतिमा निर्जीव है फिर उसकी पूजा क्यों की जाती है? समाधान- कोई भी व्यक्ति या वस्तु उसकी सजीवता या निर्जीवता की वजह से पूजनीय नहीं होती। वह पूजनीय होती है अपने गुणों से। दक्षिणावर्त शंख, कामकुंभ, चिंतामणि रत्न आदि पदार्थ निर्जीव होते हुए भी पूजनीय हैं क्योंकि यह पूजने वाले को वांछित फल देते हैं वैसे ही जिन प्रतिमा निर्जीव होते हुए भी अपनी शांत-प्रशांत मुद्रा के द्वारा पूजन करने वाले को शुभ फल देती है। शंका- यदि मूर्ति वीतराग परमात्मा के तुल्य है तो फिर इस पंचम आरे में तीर्थंकर का विरह क्यों बताया गया है? समाधान- भरत क्षेत्र के पाँचवे आरे में तीर्थंकरों का विरह भाव तीर्थंकर की अपेक्षा से है, स्थापना तीर्थंकर की अपेक्षा से नहीं। किसी गाँव में यदि चातुर्मास हेतु साधु-साध्वी न विराजमान हों तो यही कहा जाता है कि इस बार हमारे यहाँ साधु-साध्वी नहीं है पर इसका अभिप्राय यह नहीं होता कि वहाँ किसी के घर में साधु-साध्वी का फोटो भी नहीं है। इसी प्रकार जिन प्रतिमा
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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