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देवी-देवताओं की उपासना के मुख्य घटक ...95 शंका- सम्यक्त्वी देवी-देवताओं के आगे अक्षत का साथिया बनाना चाहिए या त्रिशूल?
समाधान- आचार्य जयघोषसूरिजी म.सा. के अनुसार मात्र साधर्मिक रूप में उनकी भक्ति करनी चाहिए। त्रिशूल, साथिया आदि कुछ नहीं बनाना चाहिए। भैरू जी आदि अधिष्ठायक देवों के आगे त्रिशूल बनाने की परम्परा देखी जाती है।
शंका- पार्श्वनाथ भगवान युक्त पद्मावती की मूर्ति के भंडार का द्रव्य साधारण खाते में जाएगा या देव द्रव्य में?
समाधान- किसी पुस्तक में परमात्मा का फोटो होने मात्र से उस पुस्तक के पूजा की राशि देवद्रव्य में नहीं जाती। कल्पसूत्र आदि में परमात्मा के फोटो के दर्शन करने मात्र से वह राशि देवद्रव्य में नहीं जाती ज्ञानद्रव्य में ही जाती है। प्रभु मूर्ति से युक्त अधिष्ठायक देवी-देवताओं की प्रतिमा को देव बुद्धि से अर्पित किया गया द्रव्य देव द्रव्य नहीं हो जाता वह साधारण द्रव्य ही कहलाता है। इसका प्रयोग प्रभावना एवं साधर्मिक वात्सल्य के अतिरिक्त सातों क्षेत्रों में कहीं भी हो सकता है।
शंका- समकितधारी जैन अनुयायियों को मिथ्यात्वी देवी-देवताओं की उपासना से लाभ एवं पुण्य मिलता है?
समाधान- जैनों को मिथ्यात्वी देवी-देवताओं की उपासना नहीं करनी चाहिए क्योंकि इससे सम्यक्त्व मलिन हो जाता है। यदि अपरिहार्य रूप से कहीं व्यावहारिक स्तर पर करनी पड़े तो उससे कार्य सिद्धि अवश्य होती है। जैसेचक्रवर्ती षट्खंडविजय के समय विविध स्थानों पर अट्ठम आदि तप करके अपेक्षित देवी-देवताओं की साधना करते हैं। वह क्षन्तव्य व्यवहार कहलाता है। यह प्रवृत्ति धर्म कार्य में न बाधक बनती है और न ही धर्म कार्य में गिनी जाती है। सामान्य निमित्तों में जैनों को उनकी साधना नहीं करनी चाहिए।
शंका- नवग्रह की उपासना जैन पद्धति से कैसे की जाए? तथा अन्य तरीके से करने में क्या दोष है?
समाधान- जैन धर्म मात्र वीतराग परमात्मा की आराधना को ही मुख्यता देता है। नवग्रह आदि की उपासना हेतु भी मुख्य रूप से तीर्थंकरों एवं पंच परमेष्ठी का ही जाप करना चाहिए। सत्वहीन आपत्तिग्रस्त लोगों के लिए इस