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________________ 94... शंका नवि चित्त धरिये ! भवनवासी, ज्योतिषी एवं कल्पों में उत्पन्न देव राग-द्वेष युक्त होते हैं। पूर्व जन्मों के मोहवश ये मनुष्य पर अकारण भी उपकार या अपकार करते हैं। ____ गौतम- तब फिर अच्छे कर्म करने का क्या महत्त्व? लोग पापकर्म करके भी देव-देवियों से सुफल प्राप्त कर लेंगे? भगवान- गौतम! ऐसा नहीं है ये देव भी मनुष्य के पाप को पुण्य रूप या पुण्य को पाप रूप में नहीं बदल सकते। जब प्राणी का पुण्योदय होता है तभी ये सहायक होते हैं, पापोदय में पीड़ाकारक बन जाते हैं। पुण्यहीन एवं पापी कितनी भी इनकी भक्ति करे तो भी कोई सुफल प्राप्त नहीं हो सकता। इनका महत्त्व एक बलवान मित्र या शत्रु के जितना ही समझना चाहिए। मनुष्य को इन पर निर्भर न रहकर स्वावलम्बी जीवन का आश्रय लेना चाहिए। उपरोक्त वर्णन से देवी-देवताओं की पूजा उपासना में जैन श्रावक की मनोवृत्ति का सुन्दर स्पष्टीकरण हो जाता है। यह जैन सिद्धान्तों के अनुरूप भी है। अत: जैन धर्म में सम्यक्त्वी देवी-देवताओं का भी पूजन साधर्मिक के रूप में बिना किसी इच्छा-कामना-याचना के करना चहिए। शंका- अधिष्ठायक देवी-देवताओं के पुराने वस्त्रों से छोटे झंडे या वासक्षेप आदि के बटुए बना सकते हैं? समाधान- उन वस्त्रों की उचित राशि भंडार में डालकर छोटे झंडे बनाए जा सकते हैं। पर बटुए आदि बनाना उचित नहीं है क्योंकि उतारे हुए वस्त्रों से बनाए गए बटवे आदि में पूजन सामग्री रखना अनुचित है। शंका- देवी-देवताओं के चढ़ावे के द्वारा प्राप्त राशि से धर्मशाला आदि का निर्माण हो सकता है? समाधान- देवी-देवताओं से उपाश्रय, धर्मशाला आदि का निर्माण हो सकता है किन्तु विवाह आदि सामाजिक कार्यों में उसका उपयोग नहीं हो सकता। शंका- देवी-देवताओं से सम्बन्धित बोलियों की राशि किस खाते में जाती है? समाधान- देवी-देवताओं से सम्बन्धित बोलियों की राशि साधारण खाते में जाती है। इसका उपयोग सातों क्षेत्रों में हो सकता है।
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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