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________________ 96... शंका नवि चित्त धरिये ! प्रकार की उपासना परमात्म भक्ति में बढ़ने का साधन बनती है। इसी के साथ ग्रहों की अनुकूलता एवं आपत्ति निवारण आदि भी सहजतया हो जाती है। परन्तु धर्मतत्त्व का उपयोग इसी हेतु बार-बार करना अनुचित है। व्यवहार जगत में इनकी आराधना से कम से कम मिथ्यात्व पुष्ट नहीं होता। जैनेतर पद्धति से नवग्रह उपासना करने पर मिथ्यात्व पुष्ट होता है। सम्यक्त्व के प्रति दृढ़ता कमजोर होती है। तथा सम्यक्त्व मलिन होने से अनंत संसार की वृद्धि होती है। शंका- अधिष्ठायक देवों की पूजा किस प्रकार करनी चाहिए? समाधान- अधिष्ठायक देवों की पूजा साधर्मिक के रूप में तिलक, वस्त्र, आभूषण, पुष्पमाला के द्वारा करनी चाहिए। अन्य रूप में एवं अन्य देवीदेवताओं की पूजा करने से मिथ्यात्व प्रचार की संभावना रहती है। शंका- मंदिरों के परिसर में देवी-देवताओं की देहरियाँ बनवाना, आरती करना, सुखड़ी चढ़ाना, रात्रि भक्ति आदि करना कितना उचित है? समाधान- वर्तमान में मंदिर के परिसर में बढ़ रही देवी-देवताओं की स्थापना अनुचित है। मणिभद्र देव का स्थान उपाश्रय में था। जब प्रत्येक परमात्मा के आगे अलग-अलग भंडार नहीं रखे जाते तब देवी-देवताओं के आगे क्या आवश्यकता? देवी-देवता परमात्मा के सेवक होते हैं और उन्हें परमात्मा के सेवक के रूप में ही स्थान देना चाहिए। वे परमात्म भक्ति से ही आनंदित हो जाते हैं। परमात्मा के भंडार को भरने से ही वे संतुष्ट हो जाते हैं। देवी-देवताओं के अनुष्ठानों से परमात्मा की महिमा गौण होती है। अरिहंत परमात्मा से कुछ माँगते नहीं और वे वीतराग होने से कुछ देते नहीं ऐसी मिथ्या एकान्त धारणा से ग्रसित लोग इन सबके प्रति अधिक आकर्षित होते हैं। साधारण खाते की आवक बढ़ाने के लिए ऐसे अनुष्ठानों को बढ़ावा देना सर्वथा अनुचित है।
SR No.006260
Book TitleShanka Navi Chitta Dharie-Shanka, Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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