SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...37 तत्पश्चात पश्चानुपूर्वी से द्वितीय श्रेणी प्रारम्भ कर उसमें सर्वप्रथम एक उपवास करके पारणा करें, फिर सोलह उपवास करके पारणा करें, पुन: एक उपवास करके पारणा करें, फिर पन्द्रह उपवास करके पारणा करें- इस तरह क्रमश: सोलह से घटते-घटते एवं बीच-बीच में एक-एक उपवास करते हुए दो उपवास तक करें, फिर उतरते या घटते क्रम से एक उपवास करके पारणा करें। यह इस तप की प्रथम परिपाटी है। इसमें 300 उपवास और 60 पारणा, कुल मिलाकर 1 वर्ष लगता है। इस प्रकार मुक्तावली तप की चार परिपाटियाँ लगभग चार वर्षों में पूर्ण होती हैं। इस तप की पहली श्रेणी के सभी पारणों में विगय युक्त आहार लेते हैं। दूसरी श्रेणी में सभी पारणे नीवि से करते हैं। तीसरी श्रेणी में सभी पारणे अलेप द्रव्य से करते हैं। चौथी श्रेणी में सभी पारणे आयंबिल से करते हैं। इस तप का यन्त्र इस प्रकार है - मुक्तावली 26000000001 G0000000004 (एक परिपाटी का काल 11 मास, 15 दिन तपस्या काल चार परिपाटी का काल 3 वर्ष, 10 मास एक परिपाटी के तपो दिन 285 दिन तप के दिन चार परिपाटी के तपो दिन 3 वर्ष, 2 मास (एक परिपाटी के पारणे 60 पारणा दिन १ चार परिपाटी के पारणे 240 PROGRAccom econosce
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy