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________________ 34... सज्जन तप प्रवेशिका होता है। • तदनन्तर विपरीत क्रम से सोलह उपवास कर पारणा करें, पन्द्रह उपवास कर पारणा करें, चौदह उपवास कर पारणा करें। इस तरह घटाते-घटाते एक उपवास कर पारणा करें। ऐसा करने से हार की दूसरी लता पूरी होती है। • उसके बाद आठ षष्ठ भक्त (बेला) करें। इतना तप करने से उसकी ऊपर की दाड़िम पूरी होती है। • फिर निरन्तर तीन उपवास (तेला) करके पारणा करें। फिर बेला करके पारणा करें और उसके बाद एक उपवास कर पारणा करें। इस क्रम पूर्वक तप करने से ऊपर की दूसरी काहलिका पूरी होती है। उक्त विधि में उपवास, बेला, तेला आदि का जो निर्देश किया गया है, वह निरन्तर क्रम पूर्वक समझने चाहिए। पारणे के तुरन्त दूसरे दिन उपवास आदि कर लेना चाहिए, बीच में क्रम टूटना नहीं चाहिए । यह कनकावली तप की पहली परिपाटी है। इस परिपाटी में तीन सौ चौरासी उपवास और अट्ठासी पारणा कुल 1 वर्ष, 3 मास, 22 दिन लगते हैं। इस तप की चार परिपाटी में 5 वर्ष, 2 मास और 28 दिन लगते हैं। • इस तप की पहली श्रेणी के पारणे में विगय सहित इच्छित भोजन किया जाता है। दूसरी श्रेणी में सभी पारणे नीवि से करते हैं। तीसरे श्रेणी में सभी पारणे अलेप द्रव्य से करते हैं तथा चौथी श्रेणी में सभी पारणे आयम्बिल से करते हैं । उद्यापन इस तप के पूर्ण होने पर तपो धर्म की प्रभावना हेतु बृहत्स्नात्र विधि पूर्वक अष्टप्रकारी पूजा करें। उपवास की संख्या के अनुसार स्वर्णटंक की माला बनवाकर जिनप्रतिमा के गले में पहनाएँ तथा छहों विगयों से युक्त पक्वान आदि चढ़ाएँ। साधुओं को वस्त्र, पात्र एवं अन्न का दान करें। साधर्मी वात्सल्य एवं संघ पूजा करें।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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