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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप - विधियाँ... 25
तेले पारणा इस प्रकार क्रमशः बढ़ते हुए सोलहवें महीने में सोलह-सोलह उपवास का तप किया जाता है। इस तरह प्रत्येक मास में तप की वृद्धि होती है। यहाँ तप वृद्धि का अभिप्राय बढ़ते हुए गुणों की प्राप्ति से है। इस कारण भी यह तप गुणरत्न संवत्सर कहलाता है ।
अन्तकृत्दशासूत्र (1/प्रथम अध्ययन ) के अनुसार इस तप की आराधना भगवान महावीर के शिष्य स्कन्धक मुनि एवं भगवान अरिष्टनेमि के शिष्य गौतमकुमार आदि ने की थी। यह आगाढ़ तप साधुओं एवं श्रावकों दोनों के लिए अवश्य करणीय है। इस तप की विधि इस प्रकार है
विधि
गुणरत्नं
संपूर्यते
मासे चैकादिषोडशान्ताः, स्युरूपवासाः
षोडशभिर्मासैः, षोडशभिर्मासैः,
आचारदिनकर, पृ. 353
इस तप के प्रथम मास में एक उपवास और एक पारणा, इस प्रकार पन्द्रह उपवास और पन्द्रह पारणा मिलकर तीस दिन पूरे होते हैं ।
दूसरे मास में - दो-दो उपवास करके पारणा, इस प्रकार बीस उपवास और दस पारणा मिलकर तीस दिन पूरे होते हैं।
तीसरे मास में - तीन-तीन उपवास करके एक पारणा, इस प्रकार चौबीस उपवास और आठ पारणा मिलकर बत्तीस दिन होते हैं।
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पुनस्तत्र । पंचदश ।।
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चौथे माह में - चार-चार उपवास करके एक-एक पारणा करने से चौबीस उपवास और छः पारणा के दिन मिलकर तीस दिन होते हैं।
पांचवें माह में - पाँच-पाँच उपवास करके एक-एक पारणा करने से पच्चीस उपवास और पाँच पारणे के दिन मिलकर तीस दिन होते हैं। छठे माह में छ:-छ: उपवास करते हुए पारणा करने से चौबीस उपवास और चार पारणा मिलकर अट्ठाईस दिन होते हैं।
सातवें माह में - सात-सात उपवास करते हुए पारणा करने से इक्कीस उपवास और तीन पारणा मिलकर चौबीस दिन होते हैं।
आठवें माह में - आठ-आठ उपवास पर पारणा करने से चौबीस उपवास और तीन पारणा के दिन मिलाकर सत्ताईस दिन होते हैं।