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________________ 24...सज्जन तप प्रवेशिका प्रवचनसारोद्धार आदि विधि ग्रन्थों में सर्वतोभद्र तप की यही विधि कही गयी है। इस तप का यन्त्र न्यास इस प्रकार है - उपवास 362, पारणा 49, कुल दिन 441 | श्रेणी । उप. | उप. | उप. | उप. | उप. | उप. | उप. | | प्रथम | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | द्वितीय 8 9 10 | 11 | 5 | 6 | 7 | तृतीय 11 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | | चतुर्थ | 7 8 9 | 10 | 11 | 5 | 6 | | पंचम । 10 | 11 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 षष्ठ | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 5 | सप्तम 9 10 | 11 - 5 - 6 | 7 | 8 उद्यापन - इस तप का उद्यापन भद्रतप की भाँति ही करें। कुछ आचार्य इन चारों भद्रादि तप के उद्यापन में उपवास की संख्या के अनुसार पुष्प, फल एवं पकवान परमात्मा के आगे चढ़ाने के लिए कहते हैं। इस तप से समस्त कर्मों का क्षय एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है। • प्रचलित व्यवहार के अनुसार इस तपस्या के दरम्यान “श्री महावीरस्वामी नाथाय नमः" की बीस माला गिननी चाहिए तथा साथिया आदि बारह-बारह करना चाहिए। इसका यन्त्र यह है - साथिया खमासमण कायोत्सर्ग माला ____ 12 12 10. गुणरत्न संवत्सर तप गुण रूपी रत्न पार्थिव रत्नों से भी बढ़कर मूल्यवान है। इस तप के माध्यम से गुण रूपी रत्नों के प्राप्ति की साधना लगभग एक वर्ष पर्यन्त किया जाता है। इसलिए इसका नाम गुणरत्न संवत्सर तप है। वस्तुत: गुण रूपी रत्नों की प्राप्ति होने के कारण इस तप को गुणरत्न संवत्सर तप कहते हैं। इसमें तप के दिन एक वर्ष से अधिक होते हैं, इसलिए भी इसका नाम गुणरत्न संवत्सर तप है। यह तप 16 महीनों में पूर्ण होता है। प्रथम महीने में एकान्तर उपवास किये जाते हैं, द्वितीय महीने में बेले-बेले पारणा किया जाता है, तृतीय महीने में तेले 20
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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