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जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...19 इसका यन्त्र न्यास इस प्रकार है -
___ तप दिन 75, पारणा दिन 25, कुल दिन 100 श्रेणी | उप. उप. | उप. | उप. | उप.
प्रथम । 1 2 3 4 5 | द्वितीय 3 4 5 | 1 | 2 । ततीय | 5 | 1 | 2 | 3 | 4
चतुर्थ | 2 3 4 5 | 1 पंचम | 4 | 5 | 1 1 2 3
उद्यापन – इस तप के उद्यापन में अरिहन्त परमात्मा की स्नात्र पूजा करें, यथाशक्ति फल, नैवेद्य, मोदक आदि चढ़ायें, साधर्मिक वात्सल्य करें एवं संघ पूजा करें।
• प्रचलित परम्परानुसार इस तपस्या के दौरान “श्री महावीरस्वामी नाथाय नमः” की बीस माला गिनें। स्वस्तिक आदि बारह-बारह करें। साथिया खमासमण कायोत्सर्ग माला 12
12 20 7. महाभद्र प्रतिमा तप
महाभद्र का अर्थ होता है महान कल्याणकारी। इस तप की आराधना आत्मा के विशिष्ट कल्याण के उद्देश्य से की जाती है। यहाँ महान कल्याण का तात्पर्य निर्वाण पद की प्राप्ति से है, अत: इसका नाम महाभद्र प्रतिमा तप है। इस तपश्चरण से सर्व विघ्नों का नाश होता है। इसे सर्वतोभद्र प्रतिमा भी कहते है।
यह तप भद्र तप के समान ही बीच-बीच में पारणा करते हुए सात श्रेणियों में किया जाता है और इसमें एक उपवास से लेकर सात उपवास तक चढ़ते हैं।
अंतकृत्दशासूत्र (8/7वाँ अध्ययन) में इसका नाम 'महत सर्वतोभद्र प्रतिमा' है। यहाँ 'सर्वतो' शब्द का गढ़ार्थ यह है कि इससे सम्बन्धित यन्त्र को ऊपर-नीचे, दायें-बायें कहीं से भी गिनने पर 28 की संख्या ही आती है।
आगम पाठ के अनुसार इस तप की साधना आ- वीरकृष्णा ने की थी। यह आगाढ़ तप साधुओं एवं गृहस्थों दोनों के करने योग्य है।
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