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________________ 18...सज्जन तप प्रवेशिका तरफ से गिनने पर समान योगफल आता है वैसे ही इस तप यन्त्र की प्रत्येक पंक्ति की संख्या का योग समान है अर्थात चारों ओर से गिनने पर संख्या 15 आती है। आगम पाठ के अनुसार यह तपश्चर्या श्रेणिक राजा की महारानी महाकृष्णा ने की थी। एकं द्वित्रिचतुः पंच, त्रिचतुः पंचभूद्वयैः । पंचैक-द्वित्रिवेदैश्च, द्वित्रिवेदेषु भूमिभिः ।। चतुः पंचैक द्वित्रिभिश्चोपवासैः श्रेणिपंचकम् । भद्रे तपसि मध्यस्थ-पारणाश्रेणि संयुतम् ।। __ आचारदिनकर, पृ. 352 यह तप पाँच श्रेणियों में किया जाता है। इस तप में उपवास से प्रारम्भ कर पाँच उपवास (पंचोला) तक बढ़ा जाता है। इस तप की प्रथम श्रेणी में प्रथम एक उपवास करके पारणा करें। फिर दो, तीन, चार और पाँच उपवास कर एक-एक के बाद पारणा करें। दूसरी श्रेणी में सर्वप्रथम तीन उपवास करें। फिर चार, पाँच, एक और दो उपवास कर हर एक के बाद पारणा करें। तीसरी श्रेणी में सर्वप्रथम पाँच उपवास करें। फिर एक, दो, तीन एवं चार उपवास कर हर एक के बाद पारणा करें। चौथी श्रेणी में सर्वप्रथम दो उपवास करें। फिर तीन, चार, पाँच और एक उपवास कर हर एक के बाद पारणा करें। पांचवीं श्रेणी में सर्वप्रथम चार उपवास करें। फिर पाँच, एक दो और तीन उपवास कर हर एक के बाद पारणा करें। ___इस प्रकार पाँच पंक्तियाँ पूर्ण होने पर एक परिपाटी होती है। एक परिपाटी में कुल 75 उपवास और पारणे के 25 दिन मिलाकर तीन माह और दस दिन लगते हैं। इस भाँति चार परिपाटियाँ तेरह मास और दस दिन में पूर्ण होती है। प्रवचनसारोद्धार, तिलकाचार्यसामाचारी, सुबोधासामाचारी, विधिमार्गप्रपा आदि में भद्र तप की यही विधि बतायी गयी है।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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