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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...17 पाँच, छठे दशक में छह-छह, सातवें दशक में सात-सात, आठवें दशक में आठ-आठ, नौवें दशक में नौ-नौ और दसवें दशक में भोजन-पानी की दसदस दत्तियाँ ग्रहण की जाती हैं। इस प्रतिमा की तप साधना में कुल 100 दिन लगते हैं और 550 दत्तियाँ ग्रहण की जाती है। दशदशमिका भिक्षु प्रतिमा का यन्त्र निम्न है - दत्ति संख्या कुल दिन 5555555555500 16 6 6 6 6 6 6 6 6 6 600 777777777770 || 8 | | | 888888800 [10 | 10 10 10 10 10 10 10 10 10 100 तप दिन 100 दत्तियाँ 550 6. भद्रप्रतिमा तप भद्र शब्द का अर्थ है कल्याण। प्रतिमा का अर्थ होता है प्रतिज्ञा विशेष। यह तप विशिष्ट प्रतिज्ञा अथवा कठोर नियमों के साथ आत्म कल्याण के उद्देश्य से किया जाता है इसलिए इसका नाम भद्र प्रतिमा-तप है। इस तप की आराधना का मुख्य ध्येय आत्म कल्याण है अत: इस तपश्चर्या को करने से कल्याण की प्राप्ति होती है। यह तप साधुओं एवं गृहस्थों के करने योग्य आगाढ़ तप है। अन्तकृत्दशासूत्र (5/6वाँ अध्ययन) में यह तप लघुसर्वतोभद्र-प्रतिमा के नाम से वर्णित है। सर्वतोभद्र यानि अंकों की इस प्रकार की स्थापना जिन्हें किसी भी तरफ से गिने तो भी योग एक समान आये जैसे- सर्वतोभद्र यन्त्र में चारों
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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