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________________ जैन धर्म की श्वेताम्बर परम्परा में प्रचलित तप-विधियाँ...13 भुजाओं को जानु पर्यन्त लम्बी करके, एक पदार्थ पर दृष्टि स्थिर रखते हुए अनिमेष नेत्रों से एक रात तक कायोत्सर्ग करते हैं। इस प्रतिमा के सम्बन्ध में विशेष इतना है कि इसका कालमान अन्य प्रतिमाओं की अपेक्षा कम होने पर भी इसकी साधना कठोर होती है और इसीलिए विशिष्ट सत्त्वशाली व धीर पुरुष साधु ही इस प्रतिमा का आराधन कर सकते हैं। इस तपश्चरण में अनेक प्रकार के दैविक, मानुषिक एवं तिर्यञ्चसम्बन्धी उपसर्ग आते हैं फिर भी वे चलित नहीं होते। इस आराधना में सफल होने पर उन्हें अवधिज्ञान या मनःपर्यवज्ञान की प्राप्ति अवश्य होती है। गजसुकुमाल मुनि ने श्मशान में इस महाप्रतिमा की आराधना करके एक ही दिन में मोक्ष प्राप्त किया था। प्राचीनकाल में भिक्षु प्रतिमा रूप तप धर्म सम्यक् रूप से प्रवर्तित था परंतु घटित वर्तमान में कष्ट सहिष्णता से यह तप व्यच्छिन्न हो गया है किन्तु दिगम्बर परम्परा में आज भी न्यूनाधिक रूप से विद्यमान है। इन बारह प्रतिमाओं में आठ सौ चालीस दत्तियाँ, छब्बीस उपवास एवं अट्ठाईस एक भक्त होते हैं। इस तरह कुल 28 मास और 26 दिन लगते हैं। 2. सप्तसप्तमिका भिक्षु प्रतिमा-तप ___यह प्रतिमा तप सात सप्ताहों की अवधि में किया जाता है तथा इस प्रतिमा को विशिष्ट मुनिजन ही धारण कर सकते हैं। इसलिए इसे सप्तसप्तमिका भिक्षु प्रतिमा कहा गया है। यह प्रतिमा कर्मों की विशेष निर्जरा करने के उद्देश्य से धारण की जाती है। अन्तकृत्दशासूत्र (आंठवां वर्ग, अध्ययन पांचवां) के अनुसार श्रेणिक राजा की महारानी आर्या सुकृष्णा ने दीक्षा अंगीकार कर इस प्रतिमा को वहन किया था। .. यहाँ विशेष ज्ञातव्य यह है कि बारह भिक्षु प्रतिमा से यह सप्तसप्तमिका भिक्षु प्रतिमा अलग है। उससे इसका कोई सम्बन्ध नहीं है। सातवीं भिक्षु प्रतिमा का समय एक मास है और उसमें सात दत्तियाँ भोजन की और सात दत्तियाँ पानी की ग्रहण की जाती हैं, परन्तु इस भिक्षु प्रतिमा का समय 49 दिन-रात्रि का है। यह सात सप्ताहों में पूर्ण होती है विधि - सप्तसप्तमिका भिक्षु प्रतिमा की तप विधि इस प्रकार है इस प्रतिमा के आराधन काल के प्रथम सप्ताह में प्रतिदिन एक दत्ति अन्न की और एक दत्ति पानी की ग्रहण की जाती है। इसी तरह द्वितीय सप्ताह में दो
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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