SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 74
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 12...सज्जन तप प्रवेशिका 2-7. द्विमासिकी आदि प्रतिमाएँ - दूसरी प्रतिमा धारण करने वाले साधु दो मास तक दो दत्ति भोजन की एवं दो दत्ति पानी की ग्रहण करते हैं। शेष चर्या पहली प्रतिमा के समान जाननी चाहिए। ___ इसी भाँति तीसरी प्रतिमा धारण करने वाले साधु तीन मास तक तीन-तीन दत्ति ग्रहण करते हैं। इसी क्रम से चौथी प्रतिमा धारण करने वाले साधु चार मास तक भोजन-पानी की चार-चार दत्ति, पांचवीं प्रतिमा धारक साधु पाँच मास तक भोजन-पानी की पाँच-पाँच दत्ति, छठवीं प्रतिमाधारक साधु छह मास तक भोजन-पानी की छह-छह दत्ति, सातवी प्रतिमा धारण करने वाले साधु सात मास तक भोजन-पानी की सात-सात दत्ति ग्रहण करते हैं। ___8. आठवीं प्रतिमा – यह प्रतिमा सात अहोरात्रि की होती है। इसमें सात दिन एकान्तर चौविहार उपवास और पारणे में आयंबिल करते हैं, इस तरह तीन उपवास और चार आयंबिल होते हैं। इस प्रतिमा में साधु गाँव के बाहर उत्तानासन, पाश्र्वासन या निषद्यासन (पालथी मारकर) से कायोत्सर्ग में स्थिर रहते हैं। 9. नौवीं प्रतिमा - यह प्रतिमा पूर्ववत सात अहोरात्रि की होती है। इसमें भी सात दिन एकान्तर निर्जल उपवास और पारणे में आयंबिल करते हैं। विशेष यह है कि इस प्रतिमा के आराधन काल में साधु गाँव के बाहर दण्डासन (सीधे दण्डवत लेटना), लकुटासन (पीठ के बल लेटना) या उत्कटासन से कायोत्सर्ग में स्थिर रहते हैं। 10. दसवीं प्रतिमा - यह प्रतिमा पूर्ववत सात अहोरात्रि की होती है। इसमें भी सात दिन एकान्तर निर्जल उपवास और पारणे में आयंबिल करते हैं। विशेष यह है कि इस प्रतिमा के आराधन काल में भिक्षु गोदोहनिकासन, वीरासन या आम्रकुब्जासन से कायोत्सर्ग में स्थित रहते हैं। 11. ग्यारहवीं प्रतिमा - यह प्रतिमा एक अहोरात्रि की होती है। इसमें प्रतिमाधारी भिक्षु चौविहार (निर्जल) बेला करके गाँव के बाहर शून्य स्थान में व्याघ्र की भाँति भुजाएँ सीधी लम्बी करके कायोत्सर्ग करते हैं। 12. बारहवीं प्रतिमा - यह प्रतिमा एक रात्रि की होती है। इसमें साधु निर्जल अष्टम (तेला) तप करके गाँव के बाहर जिन मुद्रा (दोनों पैर के बीच चार अंगुल का अन्तर रखते हुए सीधे सम अवस्था में खड़े रहना) में स्थित होकर
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy