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xliv...सज्जन तप प्रवेशिका
शुद्धि होती है। डॉ. जे. एच. सटिडेन के अनुसार दूषित पदार्थों के बाह्य निकास के लिए उपवास से बढ़कर दूसरी कोई चिकित्सा नहीं है। यह एक विशिष्ट और विश्वसनीय उपचार है। तप कैसा हो?
__ आज के युग में तप की घटती महत्ता का मुख्य कारण है उसके पीछे बढ़ रहे आडम्बर एवं लौकिक कामनाएँ। आज अधिकांश तपों का मूल उद्देश्य किसी न किसी लौकिक इच्छा की पूर्ति है। जबकि शास्त्रानुसार तप कामना रहित होकर किया जाना चाहिए। तप को करने का एक मात्र उद्देश्य कर्म क्षय होना चाहिए। तप एक उत्कृष्ट मंगल है इसके द्वारा सांसारिक लाभ तो स्वयमेव ही प्राप्त हो जाते हैं ठीक वैसे ही जैसे खेती में घास की प्राप्ति होती है, परन्तु घास प्राप्ति के लिए खेती करना तो मूर्खता है। तप के द्वारा तो समस्त कर्मों की निर्जरा करके मोक्ष रूप शाश्वत सुख की प्राप्ति हो सकती है।
वर्तमान समय में बड़ी तपस्याओं के पीछे बढ़ते आडम्बर, प्रीतिभोज आदि में बढ़ते खर्चे एवं घटता अविवेक आज के युवा वर्ग को तप मार्ग से च्युत कर रहा है। आज तप के पीछे रहे मौलिक तथ्यों से अधिकांश लोग अनभिज्ञ है। तप अनुमोदना निमित्त अर्थ का सद्व्यय करना गलत नहीं है परन्तु उसे करने का तरीका एवं प्रयोजन सही होना चाहिए। तप अनुमोदना रूप कार्यों से अन्य लोगों को भी तप की प्रेरणा मिले तभी उनकी सार्थकता है। आज बड़ी तपस्या करने का अभिप्राय होता है लाखों का खर्च। इस कारण मध्यम वर्गीय गृहस्थ को तप करने से पूर्व बहुत सोचना पड़ता है अत: तप निमित्त लेन-देन एवं प्रीतिभोज का आयोजन विवेक पूर्वक एवं आवश्यकता अनुसार करते हुए शासन प्रभावना के अन्य आयोजन करने चाहिए। ___ समाहारतः तप कामना रहित, आडम्बर रहित, भौतिक अभिलाषा से रहित एवं सांसारिक लेन-देन से रहित होना चाहिए। तप करने का अधिकारी कौन? ।
आचार दिनकर के अनुसार जो शान्त हो, अल्प निद्रालु हो, अल्प आहारी हो, कामना रहित हो, कषाय वर्जित हो, धैर्यवान हो, अनिन्दक हो, गुरुजनों की शुश्रुषा में तत्पर हो, कर्म क्षय का अर्थी हो, प्रायः राग एवं द्वेष से रहित हो, दयालु हो, विनित हो, इहलौकिक-पारलौकिक सुख कामना से मुक्त हो,