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सज्जन तप प्रवेशिका...xlii तप को समझने का प्रयास किया जाए तो तप का अर्थ देह दण्डन नहीं है। वस्तुत: अपनी इच्छाओं और आवश्यकताओं में भेद करने का Thermometer तप है। तप के द्वारा अपने आप पर Control प्राप्त किया जाता है। तप के प्रत्याख्यान पाठ में एक शब्द आता है ‘सव्वसमाहिवत्तियागारेणं' इसका अर्थ है- जब तक बाह्य एवं आभ्यंतर समाधि रहे तब तक ही गृहीत प्रत्याख्यान आचरणीय है। तप के द्वारा देह दण्डन किया जाता है यह एक भ्रान्त मान्यता है। वस्तुत: जिस प्रकार दूध को गरम करने के लिए तपेली को गरम करना आवश्यक है वैसे ही अन्तर आत्मा की विशुद्धि के लिए शरीर को गलाकर ही तदनुरूप परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। __कई बार प्रश्न होता है कि आत्म विकास आदि भाव विशुद्धियुत क्रियाओं में तप की आवश्यकता क्यों? उनकी संसिद्धि में तप का क्या स्थान है?
जैन साधना में तप को सर्वोत्तम स्थान दिया गया है। तप धर्माचरण का अभिन्न अंग है। धर्म रहित मनुष्य को पशु तुल्य माना गया है। आगमोक्त वचनों के अनुसार समता भाव पूर्वक की गई तपस्या से निकाचित कर्मों की भी निर्जरा हो जाती है।
आज की युवा पीढ़ी को तप आदि बंधन रूप लगते हैं। उनके अनुसार जो कुछ हो स्वेच्छा पूर्वक हो, बंधन या नियंत्रण नहीं होना चाहिए। कल्पना कीजिए कि गाड़ी चलाते हुए यदि ब्रेक पर नियंत्रण संचालक के हाथ में न हो तो वाहन गंतव्य तक पहुँच पाएगा या नहीं? यह शंका सतत बनी रहती है।
तप शारीरिक स्वस्थता का श्रेष्ठ माध्यम है। जिस प्रकार एक सप्ताह काम करने के बाद संडे को छुट्टी आवश्यक प्रतीत होती है। वैसे ही आंतरिक, शारीरिक यन्त्रों को भी हफ्ते में एक दिन विश्राम चाहिए। तप के माध्यम से शरीर की अतिरिक्त Calorie आदि ऊर्जा की खपत हो जाती है। इससे शरीर स्वस्थ एवं सक्रिय रहता है।
वर्तमान में प्रचलित Dieting तप का ही बदला हुआ रूप है। यह घंटेघंटे के पच्चक्खाण, ऊनोदरी, रसत्याग आदि का मिश्रित रूप है।
चिकित्सा शास्त्र के अनुसार तप शरीर के लिए अत्यंत आवश्यक प्राकृतिक चिकित्सा है। आयुर्वेद शास्त्र के अनुसार बुखार आदि में लंघन (उपवास) करने से विषाक्त रोगाणुओं का नाश हो जाता है। तप करने से तन की