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________________ परिशिष्ट-IV...307 • 'अमुक तप आलोयण निमित्तं करेमि काउसग्गं' अन्नत्थ सूत्र कहकर चार लोगस्स का कायोत्सर्ग करें। पूर्णकर प्रकट में लोगस्स कहें। अतिथि सत्कार करें। यथाशक्ति उद्यापन करें। पच्चक्खाण पारने की विधि स्थापनाचार्य के समक्ष एक खमासमण पूर्वक इरियावहि., तस्स उत्तरी. , अन्नत्थ. कहकर एक लोगस्स का पूर्वक कायोत्सर्ग करें। पारकर प्रकट लोगस्स कहें। फिर एक खमा. देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! चैत्यवन्दन करूं?' इच्छं कह बायां घुटना ऊँचा करके चैत्यवन्दन करें जयउ सामय जयउ सामिय रिसह सत्तुंजि, उज्जिति पहु नेमिजिण, जयउ वीर सच्चउरिमंडण, भरूअच्छहिं मुणिसुव्वय मुहरि पास। दुह-दुरिअखंडण अवर विदेहिं तित्थयरा, चिहुं दिसि विदिसि जं के वि, तीआणागय सपइअ, वंदं जिण सव्वेवि ।।1।। कम्मभूमिहिं कम्मभूमिहिं पढमसंघयणि, उक्कोसय सत्तरिसय जिणवराण विहरंत लग्भइ, संइ जिणवर वीस, मुणि बिहुँ कोडिहिं वरनाण, समणह कोडिसहस्स दुअ, थुणिज्जइ निज्ज विहाणि ।।2।। सत्ताणवइ सहस्सा, लक्खा, छप्पण अट्ठकोडीओ। चउसय छायासीया, तिअलोए चेइए वंदे ।।3।। फिर जं किंचि., नमुत्थुणं., जावंति चेइयाइं., जावंत केवि साहू., नमोऽर्हत्., उवसग्गहरं., जयवीयराय- इन सूत्रों को विधिपूर्वक बोलें। वंदे नवकोडिसयं, पणवीसं कोडि लक्ख तेवना। अट्ठावीस सहस्सा, चउसय अट्टासिया पडिमा ।।4।। तदनन्तर एक खमासमण देकर 'इच्छा. संदि. भगवन्! पच्चक्खाण पारवां . मुँहपत्ति पडिलेहुं इच्छं' कह मुँहपत्ति का पडिलेहण करें। फिर एक खमा. देकर 'पच्चक्खाण परावेह यथाशक्ति, फिर एक खमा. देकर इच्छा. संदि. भगवन! पच्चक्खाण पारेमि?' तहत्ति कहकर एवं मुट्ठी बांधकर तीन नवकार गिनें। तत्पश्चात पोरिसी, साढ पोरिसी, पुरिमड्ड या अवड्ड जो भी तप किया हो उसका नाम लेते हुए पच्चक्खाण पारें। जैसे- चौविहार, आयम्बिल, एकासणा किया तिविहार का पच्चक्खाण पारूं। फासियं पालियं सोहियं तिरियं किट्टियं जं आराहियं, जं च न आराहियं तस्स मिच्छामि दुक्कडं। फिर तीन नवकार गिनें।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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