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________________ 306...सज्जन तप प्रवेशिका से तीन बार निम्नलिखित पाठ सुनें "अहण्णं भंते! तुम्हाणं समीवे, अमुक तवं उवसंपज्जाणं विहरामि। तं जहा-दव्वओ, खित्तओ, कालओ, भावओ। दव्वओणं (अमुक तवं), खित्तओणं इत्य वा अणत्थ वा, कालओणं जाव परिमाणं, भावओणं जाव गहेणं ण गहिज्जामि, छलेणं ण छलिज्जामि जाव सन्निवाएणंण भविज्जामि जाव अण्णेण वा केणइ रोगायंकेण वा परिणामवसेण। एसो मे परिणामो ण पडिवज्जइ। ताव मे एस तवो रायाभियोगेणं, गणाभियोगेणं, बलाभियोगेणं, देवाभियोगेणं, गुरुनिग्गहेणं, वित्तिकंतारेणं, अणत्यणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरे।" शिष्य कहें - वोसिरामि। . • तत्पश्चात् गुरु आशीर्वचन के रूप में कहें "हत्येणं सुत्थेणं अत्येणं तदुभएणं सम्मं धारणीयं चिरं पालणीयं गुरुगुणेहिं वुड्डाहि नित्थार पारगा होह।" • तत्पश्चात तप इच्छुक एक खमासमण देकर गुरु मुख से उपवास, आयंबिल या एकासना आदि का प्रत्याख्यान करें। सर्व तप ग्रहण की यह विधि जीत व्यवहार के अनुसार कही गई है। तप पारने की विधि • उपाश्रय में जाकर ज्ञान पूजा करें। • फिर इरियावहि प्रतिक्रमण करें। फिर 'अमुक तप पारवा मुंहपत्ति पडिलेहुँ' कहकर मुंहपत्ति पडिलेहण करके दो वांदणा देवें। फिर 'इच्छा. संदि. भगवन्! अमुक तप पारावणत्थं काउस्सग्गं करावेह'। गुरु कहें "करावेमो'। फिर एक खमासमण देकर "इच्छाकारेण तुम्हे अम्हं अमुक तप पारावणत्यं चेइयं वंदावेह, वासनिक्खेवं करेह" ऐसा कहें। तब गुरु "वंदावेमो करेमो" कहते हुए शिष्य के सिर पर वासक्षेप डालें। • फिर तीन खमासमण देकर बायाँ घुटना ऊँचा करके ‘णमृत्यूणं से जयवीयराय' पर्यन्त चैत्यवन्दन करें। • फिर 'अमुक तप पारावणत्यं करेमि काउसग्गं' अन्नत्थसूत्र कह कर एक नवकार का कायोत्सर्ग करें। फिर कोई सी भी स्तुति कहें। फिर बैठकर 'णमुत्थुणं' कहें। • अन्त में नीचे हाथ रखकर 'इच्छा0 संदि० भग)! अमुक तप करते हुए जो भी कोई अविनय आशातना हुई हो वह सब मन-वचन-काया से मिच्छामि दुक्कडं ऐसा बोलें। गुरु कहे- 'नित्थार पारगा होह' फिर यथाशक्ति पच्चक्खाण करें।
SR No.006259
Book TitleSajjan Tap Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaumyagunashreeji
PublisherPrachya Vidyapith
Publication Year2014
Total Pages376
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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