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परिशिष्ट-IV...305
शान्तिः शान्तिकरः श्रीमान्, शांतिर्दिशतु मे गुरुः।
शान्तिरेव सदा तेषां, येषां शान्तिगृह गृहे।। तदनन्तर 'श्रुतदेवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं' अन्नत्थ सूत्र बोलकर एक नमस्कार मंत्र का कायोत्सर्ग करें। फिर निम्न स्तुति बोलें
सुवर्ण शालिनी देयाद्, द्वादशांगी जिनोद्भवा ।
श्रुतदेवी सदा मह्य, मशेषश्रुत संपदम् ।। तत्पश्चात ‘भुवन देवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं' अन्नत्थ सूत्र बोलकर एक नमस्कार मंत्र का कायोत्सर्ग करें। फिर निम्न स्तुति बोलें
ज्ञानादिगुण युक्तानां, स्वाध्याय ध्यान संयम रतानाम्। विदधातु भुवनदेवी, शिवं सदा सर्व साधुनाम्।। तत्पश्चात क्षेत्र देवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं' अन्नत्थ सूत्र बोलकर एक नमस्कार मंत्र का कायोत्सर्ग करें। फिर निम्न स्तुति बोले
यासां क्षेत्र गताः सन्ति, साधवः श्रावकादयः। जिनाज्ञां साधयन्तस्ता, रक्षन्तु क्षेत्रदेवता।।
उसके बाद ‘शासन देवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं' अन्नत्थ सूत्र बोलकर एक नमस्कार मंत्र का कायोत्सर्ग करें। फिर निम्न स्तुति बोलें
या पातिशासनं जैने, सद्यः प्रत्यूह नाशिनी।
साभिप्रेत समृद्धयर्थं, भूयाच्छासन देवता।। तदनन्तर ‘समस्त वैयावृत्यकर देवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं' अन्नत्थ सूत्र बोलकर एक नमस्कार मंत्र का कायोत्सर्ग करें। फिर निम्न स्तुति बोलें
श्री शक्रप्रमुखा यक्षाः, जिन शासन संस्थिताः।
देवान देव्यस्तदन्येऽपि, संघं रक्षत्व पापतः।। तत्पश्चात चैत्यवन्दन मुद्रा में बैठकर णमुत्थुणं0, जावंति चेइयाइं0 जावंत केवि साहु0, उवसग्गहरं0, जयवीयराय आदि सूत्र बोलकर चैत्यवन्दन करें।
• फिर स्थापनाचार्य के सम्मुख एक खमासमण देकर 'भगवन्! अमुक तव गहणत्थं करेमि काउस्सग्गं' इतना कहकर एक लोगस्स सूत्र का कायोत्सर्ग करें। फिर एक खमासमण देकर अर्धावनत मुद्रा में तीन नमस्कार मंत्र का स्मरण करें।
• पुन: एक खमासमण देकर अर्धावनत मुद्रा में स्थित हो बोलें
'इच्छकार भगवन्! अमुक तप दंडक उच्चरावोजी।' गुरु कहें- 'उच्चरावेमो।' फिर जिस तप का अवधारण किया हो उस तप का नाम लेकर गुरु मुख