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304...सज्जन तप प्रवेशिका 18. कोई भी तप सांसारिक कामना या इच्छा पूर्ति से नहीं करना चाहिए। 19. तपस्या शुरु करने के मुहूर्त, विधि-विधान, तिथि-मिति आदि के सम्बन्ध
में साधु-साध्वी से समझकर करना अधिक लाभदायक है। 20. तपस्या में क्षमा भाव रखना अत्यावश्यक है, क्योंकि क्षमा युक्त किया
गया तप ही कर्म निर्जरा का कारण बनता है। 21. तप दिन में अक्षत से स्वस्तिक बनाकर उस पर यथाशक्ति फल, नैवेद्य एवं रुपया चढ़ाना चाहिए।
सर्व तप ग्रहण करने की विधि तप करने का इच्छुक व्यक्ति शुभ दिन में पवित्र वस्त्र धारण कर गुरु के समीप जाएं। फिर गुरु महाराज को विधिवत वन्दन कर ज्ञान पूजा करें। तदनन्तर जिस तप का निश्चय किया हो उसे गुरु के मुखारविन्द से निम्न प्रकार ग्रहण करें
• सर्वप्रथम चौकी या पट्टे पर स्वस्तिक, रत्नत्रय की तीन ढेरी एवं सिद्धशिला के प्रतीक रूप में अर्धचन्द्र बनाएं, सिद्धशिला के स्थान पर फल एवं स्वस्तिक के ऊपर मिठाई चढ़ाएं तथा बीच में नारियल एवं सवा रुपया चढ़ाएं। . उसके बाद आसन बिछाकर चरवला एवं मुखवस्त्रिका को हाथ में ग्रहण करें। • फिर इरियावहिल तस्सउत्तरी0 अन्नत्थ सूत्र बोलकर एक लोगस्स अथवा चार नवकार मंत्र का स्मरण करें। कायोत्सर्ग पूर्णकर पुन: प्रगट में लोगस्स सूत्र कहें। • फिर तप प्रारम्भ करने हेतु उत्कटासन मुद्रा में नीचे बैठकर मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करके द्वादशावर्त्तवन्दन करें। फिर स्थापनाचार्यजी के समक्ष एक खमासमण (पंचांग प्रणिपात) पूर्वक कहें "इच्छाकारेण संदिसह भगवन्! (जो तप निश्चित किया हो उसके नाम पूर्वक बोले) गहणत्थं चेइयं वंदावेह।" फिर ‘इच्छं' कहें।
• उसके पश्चात चैत्यवन्दन बोलकर एक-एक नमस्कार मन्त्र का चार बार कायोत्सर्ग करते हुए चार स्तुतियाँ कहें। यहाँ सूत्रादि बोलने की जानकारी गुरु या अनुभवी व्यक्ति से ज्ञात करनी चाहिए।
• तत्पश्चात चैत्यवन्दन मुद्रा में णमुत्थुणं सूत्र बोलें। फिर खड़े होकर 'शान्तिनाथ स्वामी आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं' अन्नत्थ सूत्र बोलकर एक नमस्कार मंत्र का कायोत्सर्ग करें। फिर निम्न स्तुति बोलें
श्रीमते शान्तिनाथाय, नमः शान्तिविधायिने। त्रैलोक्यस्यामराधीश, मुकुटाभ्यर्चितांघ्रये।। फिर 'शान्ति देवता आराधनार्थं करेमि काउस्सग्गं' अन्नत्थ सूत्र बोलकर एक नमस्कार मंत्र का कायोत्सर्ग करें। फिर निम्न स्तुति बोलें